...

भगवान के पद का स्पर्श मात्र जीव को पावन करता है : शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज----

जिले के    कोठीघाट देवरी टीका स्थित नारायण आश्रम के  *प्रांगण* में चल रहे चातुर्मास व्रत में उपस्थित भक्तों को  श्री राम कथा के प्रसंग में सम्बोधित करते हुए शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज ने कहा
*भगवान के पद का स्पर्श मात्र जीव को पावन  करता है ।।* शास्त्र कहते है-भगवान के पदकमल पावन है माता अहिल्या को अपने पद कमलों से पावन किये।।
माता अहिल्या ने कहां अगर मैं पत्थर नही बनती तो भगवान हमको पावन कैसे करते ।। मैं इसको परम अनुग्रह मानती हूं ।। आपका पावन दर्शन को भगवान शंकर परम् लाभ मानते है
माता अहिल्या ने कहा=आपके चरणों मे मेरा मन रूपी भवँर रसपान करता रहे ।।
ऐसी प्रार्थना कर गौतम ऋषि की पत्नी माता अहिल्या परमपद को प्राप्त हुई।।
*महाराज श्री ने आगे कथा प्रसंग में कहे कि=*
अयोध्या से श्री राम हर्षोल्लास पूर्वक आगे चलते गए । लेकिन माता अहिल्या के यहाँ से बिन हर्ष चले।। इसलिए = *गए जहां जल पावन गङ्गा* माँ गंगा के पावन तट पहुँचे-
वहां स्नान दानादि करके बहुत आनंदानुभूति हुई ।। फिर
आगे बढ़ते गए श्री राम जनकपुर पहुँचे।। राजा जनक ऋषि विश्वामित्र के चरणों मे झुक के प्रणाम करते हैं= ऋषि विश्वामित्र उनके विनय को देखकर आशीर्वाद दिए। वहां ऋषि महर्षियों को देखकर राजा जनक मन ही मन प्रफुल्लित हुए कहे ये हमारे मंगल का प्रतीक है।।
राजा जनक श्रीराम लक्ष्मण के स्वरूप को देख कर कहे  - *इन्हें विलोकत अति अनुरागा*
विश्वामित्र जी कहे ये सभी के प्यारे है । बोले कि *रघुकुल मणि दशरथ के जाए*
ये राम लखन दो भाई हैं। सारी दुनिया इन्हें जानती है ये बड़े वीर है इन्होंने ही हमारे यज्ञ की रक्षा किये हैं।।
जनकपुर को देख भगवान श्रीराम कहे-
*पुर नर नारि सुभग सूचि संता*
जनकपुर के सभी नर नारि सुंदर एवं हृदय पवित्र होकर सन्त हैं ।।
भगवान श्री राम आनंद के आनंद है एवं माता सीता सौंदर्य का भी सौंदर्य हैं।।
इसलिए वहां पूर्ण आनंद एवं सौंदर्य प्रकट हुआ।।
*कथा के पूर्व महाराज श्री का* श्री काशी धर्मपीठ परम्परा अनुसार  पादुका पूजन  मुंबई से आये डोंगर सिंह ,अनिल सिंह,राजेन्द्र दूबे, भिंड से शास्त्री  जी ,व्रज विहारी त्रिपाठी ,ज्ञानेंद्र दीक्षित ,माधव साहू जी शिवकुमार रजक जी कुन्नू लाल जी एवं समिति के पदाधिकारियों द्वारा पूजन  सम्पन्न हुआ।।