भगवान की माया भगवान से अलग नही है, माया अनिवर्चनीय है: स्वामी नारायणानंद तीर्थ
सिवनी महाकौशल। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज का सिवनी जिले के कोठीघाट देवरीटीका स्थित नारायण आश्रम के प्रांगण में चल रहे चातुर्मास व्रत में उपस्थित भक्तों को श्री राम कथा के के प्रसंग में सम्बोधित करते हुए बताया कि भगवान की माया भगवान से अलग नही है। माया अनिवर्चनीय है।।
महाराजश्री ने कहा कि राजा जनक ऋ षि विश्वामित्र को बधाई देते हुए उनका अभिनंदन करते हैं तथा श्री राम और देवी सीता के विवाह के आगे के कार्यक्रम के बारे में पूछते हैं। ऋ षि विश्वामित्र राजा जनक को कहते हैं कि हे जनक यह विवाह तो शिव धनुष के अधीन था। तुम धनुष टूटते ही है विवाह तो हो चुका है लेकिन फिर भी आपने कुल के रीति रिवाज के अनुसार ही आगे का कार्यक्रम बनाइए। ऋ षि विश्वामित्र के कहने पर जनकपुरी से राजा दशरथ के पास सन्देश भेजा जाता है। तथा उसके बाद दोनों परिवारों के द्वारा विचार करके राजा दशरथ के चारो पुत्रो का विवाह राजा जनक की चारो पुत्रियों से निश्चित कर दिया जाता है जिसमे श्रीराम के साथ देवी सीता, भरत के साथ मान्ध्वि, लक्ष्मण के साथ उर्मिला, तथा शत्रुघ्न के साथ श्रुतिकीर्तिम।
महाराज श्री ने कहा कि भारतीय समाज में राम और सीता को आदर्श दंपत्ति (पति पत्नी) का उदाहरण समझा जाता है। राम सीता का जीवन प्रेम, आदर्श, समर्पण और मूल्यों को प्रदर्शित करता है। महाराज श्री ने कहा बड़े बड़े पुण्यात्माओं के राम जैसे पुत्र उत्पन्न होते हैं। विप्र गुरु गाय और सुरसेवी। चारों के सेवा का प्रतिफ़ल है चार पुत्र पैदा हुए और ये चारों ही बालक श्रेष्ठ हैं।
कथा के पूर्व महाराज श्री का श्री काशी धर्मपीठ परम्परा अनुसार पादुका पूजन मुंबई से आये जे.एन. उपाध्याय ,राजेन्द्र दूबे, भिंड से शास्त्री ,व्रज विहारी त्रिपाठी ,ज्ञानेंद्र दीक्षित कुन्नू लाल जी कैलाश राय एवं समिति के पदाधिकारियों द्वारा पूजन सम्पन्न हुआ।
महाराजश्री ने कहा कि राजा जनक ऋ षि विश्वामित्र को बधाई देते हुए उनका अभिनंदन करते हैं तथा श्री राम और देवी सीता के विवाह के आगे के कार्यक्रम के बारे में पूछते हैं। ऋ षि विश्वामित्र राजा जनक को कहते हैं कि हे जनक यह विवाह तो शिव धनुष के अधीन था। तुम धनुष टूटते ही है विवाह तो हो चुका है लेकिन फिर भी आपने कुल के रीति रिवाज के अनुसार ही आगे का कार्यक्रम बनाइए। ऋ षि विश्वामित्र के कहने पर जनकपुरी से राजा दशरथ के पास सन्देश भेजा जाता है। तथा उसके बाद दोनों परिवारों के द्वारा विचार करके राजा दशरथ के चारो पुत्रो का विवाह राजा जनक की चारो पुत्रियों से निश्चित कर दिया जाता है जिसमे श्रीराम के साथ देवी सीता, भरत के साथ मान्ध्वि, लक्ष्मण के साथ उर्मिला, तथा शत्रुघ्न के साथ श्रुतिकीर्तिम।
महाराज श्री ने कहा कि भारतीय समाज में राम और सीता को आदर्श दंपत्ति (पति पत्नी) का उदाहरण समझा जाता है। राम सीता का जीवन प्रेम, आदर्श, समर्पण और मूल्यों को प्रदर्शित करता है। महाराज श्री ने कहा बड़े बड़े पुण्यात्माओं के राम जैसे पुत्र उत्पन्न होते हैं। विप्र गुरु गाय और सुरसेवी। चारों के सेवा का प्रतिफ़ल है चार पुत्र पैदा हुए और ये चारों ही बालक श्रेष्ठ हैं।
कथा के पूर्व महाराज श्री का श्री काशी धर्मपीठ परम्परा अनुसार पादुका पूजन मुंबई से आये जे.एन. उपाध्याय ,राजेन्द्र दूबे, भिंड से शास्त्री ,व्रज विहारी त्रिपाठी ,ज्ञानेंद्र दीक्षित कुन्नू लाल जी कैलाश राय एवं समिति के पदाधिकारियों द्वारा पूजन सम्पन्न हुआ।
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