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हिन्दी भाषी राज्यों में कम वोटिंग से भाजपा चिंतित, कम वोटिंग से सत्ता पक्ष को होते रहा है नुकसान

हिन्दी भाषी राज्यों में कम वोटिंग से भाजपा चिंतित, कम वोटिंग से सत्ता पक्ष को होते रहा है नुकसान

सिवनी महाकौशल 27  अपै्रल 2024

लोकसभा चुनाव में दूसरे चरण में भी वोटिंग का पहले फेज जैसा हाल रहा जिसके कारण विभिन्न राजनेतिक दलों के साथ साथ चुनाव आयोग भी चिंतित है क्योंकि हर साल चुनाव आयोग प्रयास करता है की अधिक से अधिक मतदान हो जिसके लिए कई जागरूकता कार्यक्रम भी चलाए जाते है। वैसे दो चरणों में जिस तरह मतदान कम हुआ उसके बाद अब राजनीतिक मामलों के जानकार समीक्षा में जुट गए है वही एन डी ए और इंडिया गठबंधन भी समीक्षा करने में जुटे हुए है। 

जानकारो की माने तो लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में भी मतदान प्रतिशत कम होने से कम मार्जिन वाली सीटों पर इसका सीधा असर पड़ सकता है।  2019 में लगभग 75 सीटों पर नजदीकी मुकाबला था. ऐसे में परिणाम किसी भी तरफ झुक सकता है। दूसरे चरण में शुक्रवार को 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 88 सीटों पर मतदान हुए। दूसरे चरण के चुनाव में भी मतदाताओं के भीतर ज्यादा उत्साह नहीं दिखाई दिया। दूसरे चरण  का वोटिंग ट्रेंड पहले चरण के चुनाव से भी खराब रहा. दूसरे चरण में लगभग 63.00 प्रतिशत मतदाताओं ने ही अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जबकि 2019 में इन्हीं सीटों पर 70 फीसदी से ज्यादा लोगों ने बढ़-चढक़र वोट किया था जिसका फायदा सत्ता में काबिज भाजपा को मिला था। लेकिन दो चरणों में कम होते इस वोटिंग प्रतिशत ने सभी राजनीतिक दलों का गणित बिगाड़ दिया है। याद दिला दे की पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोट डाले गए थे. पिछले चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुए थे। यही हाल दूसरे चरण में भी रहा. किसी भी राज्य में मतदान का आंकड़ा 80 फीसदी को पार नहीं कर सका जो चिंता का विषय हो सकता है।

वैसे यदि आंकड़ों की बात करें तो सबसे ज्यादा त्रिपुरा में 78.6 प्रतिशत और सबसे कम उत्तर प्रदेश में 54.8 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है. वहीं मणिपुर में 77.2 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 73.1 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 71.8 प्रतिशत, असम में 70.8, जम्मू और कश्मीर में 71.6, केरल में 65.3, कर्नाटक में 67.3, राजस्थान में 63.9, मध्य प्रदेश में 56.8, महाराष्ट्र में 54.3 और बिहार में 54.9 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट किया।

वोटिंग प्रतिशत कम होने के कारण बदलते रही है सरकारें 

वैसे पिछले कुछ चुनाव के रिकॉर्ड को देखे तो पिछले लगभग 12 में से 5 चुनावों में वोटिंग प्रतिशत कम हुए हैं और इनमें से चार बार सरकार बदली है। जानकर बताते है की  1980 के चुनाव में मतदान प्रतिशत कम हुआ तब जनता पार्टी को हटाकर कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। वहीं 1989 में मत प्रतिशत गिरने से कांग्रेस की सरकार चले गई थी और केंद्र में  बीपी सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी थी। 1991 में भी मतदान में गिरावट के बाद केंद्र में कांग्रेस की वापसी हुई थी। हालांकि 1999 में वोटिंग प्रतिशत में गिरावट के बाद भी सत्ता नहीं बदली। वहीं 2004 में एक बार फिर मतदान में गिरावट का फायदा विपक्षी दलों को मिला था और कांग्रेस की सरकार बनी। 2009 में भी कांग्रेस की ही  सरकार बनी थी।1977 से लेकर अब तक हुए 12 चुनावों में मतदान प्रतिशत 55 प्रतिशत से लेकर 67 प्रतिशत के आसपास ही रहा है. साल 2019 के चुनाव में देश में सबसे अधिक  मतदान 2019 में हुआ था जब 67.4 प्रतिशत वोट पड़े थे. 12 में से 7 चुनावों में मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी देखने को मिली. इन चुनावों के परिणाम पर नजर देने के बाद पता चलता है कि 7 में से 4 बार सरकार बदली. वहीं 3 चुनावों में सरकार नहीं बदली अर्थात सत्ताधारी दल को वोट परसेंट के बढऩे का फायदा भी हो सकता है और नुकसान भी हो सकता है. साल 1984, 2009 और 2019 के चुनावों में वोट परसेंट के बढऩे का लाभ सत्ताधारी दल को हुआ और उसकी बड़ी बहुमत के साथ वापसी हुई। 4 चुनाव ऐसे रहे हैं जब मतदान में बढ़ोतरी हुई और केंद्र की सरकार बदल गयी. साल 1977, 1996, 1998 और 2014 के चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ ही सत्ता में भी परिवर्तन देखने को मिला.

60 प्रतिशत से अधिक मतदान होने पर किसे मिली जीत? 

पिछले 12 चुनावों के रिकॉर्ड को देखे तो   1977, 1984,1989, 1998,1999,2014 और 2019 के चुनावों में 60 प्रतिशत से अधिक वोट पड़े हैं. इन चुनावों के परिणाम को अगर देखें तो 1977,1989, 1998 और 2014 के चुनावों में सत्ता में परिवर्तन देखने को मिली थी। वहीं तीन चुनाव 1989,1999 और 2019 के चुनावों में 60 प्रतिशत से अधिक वोटिंग के बाद भी सत्ताधारी दलों की वापसी हुई थी। 

कम मतदान प्रतिशत वाले चुनावों का हाल

पूर्व के रिकॉर्ड को देखे तो जिन चुनावों में 60 प्रतिशत से कम वोट पड़े उन चुनावों के परिणाम चौकाने वाले रहे। आंकड़े बताते है की  1980 के चुनाव में 56.9 प्रतिशत वोट पड़े थे और केंद्र में सत्ता परिवर्तन हो गया था। तब जनता पार्टी की सरकार हार गयी थी और कांग्रेस की वापसी हो गयी थी। 1991 के चुनाव में 55.9 प्रतिशत वोट पड़े थे और केंद्र में एक बार फिर कांग्रेस की वापसी हो गयी थी।1996 के चुनाव में 57.9 प्रतिशत वोट पड़े थे तब खंडित जनादेश मिलने के बाद संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी थी. 2004 और 2009 के चुनावों में भी कम वोट परसेंट रहे थे इन चुनावों में कांग्रेस की सरकार बनी थी। जबकि 2014 और 2019 में भाजपा की सरकार बनी। इस बार दो चरणों के चुनाव में फिलहाल मतदान प्रतिशत कम ही है जिसका किसे फायदा मिलेगा और किसे नुकसानी होगी यह तो आने वाला समय बताएगा। लेकिन फिलहाल कम मतदान होने से राजनेतिक दलों के अलावा चुनाव आयोग चिंतित नजर आ रहा है।

वोटिंग कम होने से हिन्दी राज्यों में बढ़ी चिंता

 दोनो चरणों में  हिंदी भाषी राज्यों में  मतदाताओ ने वोटिंग को लेकर ज्यादा रुचि नहीं दिखाया। पूर्व के चुनाव  2014 और 2019 में हिंदी भाषी क्षेत्र में अच्छी-खासी तादाद में लोगों ने वोट किया था लेकिन इस बार मतदाताओं में वो जोश देखने को नहीं मिला। यूपी में दोनों चरणों में वोटिंग कम हुई जबकि उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 80 लोकसभा की सीटें हैं, लेकिन वहां के वोटरों में चुनाव को लेकर उत्साह नहीं दिख रहा है. पहले चरण में जहां 57 प्रतिशत वोट पड़े, वहीं दूसरे चरण में महज 54.8 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। वही बिहार में भी इस बार मतदाता वोट को लेकर काफी नीरस दिख रहे हैं. पहले चरण में जहां 48 फीसदी लोगों ने वोट किया, वहीं दूसरे चरण में  54.9 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। 

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी मतदाताओं ने नही दिखाई रुचि.      लोक सभा चुनाव में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के मतदाताओं ने भी बहुत अधिक रुचि नहीं दिखाई। दूसरे चरण में भी दोनों प्रदेशों में कम मतदान हुआ । हिंदी भाषी क्षेत्रों में कम मतदान होने से सबसे ज्यादा चिंतित भाजपा होगी क्योंकि भाजपा को सबसे ज्यादा बढ़त हिंदी भाषी क्षेत्रों से ही मिलती है। बताया जाता है की दूसरे चरण के लिए  मतदान होने से पहले ही  देश के गृह मंत्री अमित शाह ने मतदान प्रतिशत बढ़ाने मुख्यमंत्री मोहन यादव सहित चुनाव के प्रभारी महेंद्र सिंह सह प्रभारी सतीश सिंह के साथ रणनीति बनाया था। चूंकि मध्यप्रदेश में दो चरणों के 12 लोकसभा सीट में मतदान हुआ है और सभी सीटों में मतदान प्रतिशत कम रहा जिसके लिए क्यूअब भाजपा तीसरे और चौथे चरण में 17 लोकसभा सीटों में मतदान बढ़ाने को लेकर विशेष प्रयास करेगी ताकि कम मतदान से पार्टी को कोई नुकसान ना हो।