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जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज का कोठीघाट में चल रहा चार्तुमास

सिवनी। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज का सिवनी जिले के कोठीघाट देवरी टीका स्थित नारायण आश्रम के  प्रांगण में चल रहे चातुर्मास व्रत में उपस्थित भक्तों को  श्री राम कथा के धनुषयज्ञ के प्रसंग में सम्बोधित किया।
उन्होंने कहा कि राजा जनक ने जब अपनी पुत्री सीता के स्वयंबर के लिए धनुष यज्ञ का आयोजन किया। सीता स्वयंबर में राजा जनक ने बड़े-बड़े राजाओ को निमंत्रण पत्र भेजा। कई देश देशांतर के राजा,गन्धर्व,राक्षस मनुष्य का रूप धारण कर के स्वयंबर में आए। जनक ने बंदी जनों के माध्यम से अपना प्रण उपस्थित राजाओं को सुनाया। जो भी राजा की शिव धनुष को तोड़ेगा उसी के साथ अपनी पुत्री सीता का विवाह करूंगा। यह सुनकर देश विदेश के राजा सीता स्वंयम्बर में जनकपुर पहुंचते है।
महाराज जी ने कहा कि धनुष यज्ञ में पहुंचें राजाओं ने शिव धनुष को तोडऩे की खूब जोर अजमाइस की लेकिन शिव धनुष टस से मस नहीं हुई। यह देख राजा जनक को चिंता सताने लगी उन्होंने कहा कि क्या यह धरती वीरों से खाली है। कोई भी राजा शिव धनुष को भंग न कर सका राजा जनक की चुनौती पूर्ण बात सुनकर गुरु सहित राजकुमार लक्ष्मण तमतमा उठे।
महाराज श्री ने कहा -उठौ राम भंजन भव चापा। इसी बात पर ऋषि विश्वामित्र की आज्ञा पाकर रामचन्द्र जी उठते है और बिजली की चमक मात्र पल में शिव धनुष को पकड़ते ही शिव धनुष टूट जाती है। शिव धनुष टूटते ही आकाश से देवता लोग पुष्प वर्षा होने लगती है और चहुओर जय जयकारा होने लगता। धनुष भंग होने के बाद राजा जनक अपने अपनी पुत्री सीता का विवाह राम के साथ करते है।
वहीं काशी से आये पूज्य महाराज श्री के उत्तराधिकारी शिष्य श्री लखणस्वरूप ब्रह्मचारी जी महाराज ने गुरुतत्व पर प्रकाश डालते हुए बताए कि हमारे धर्मशास्त्रों में ‘गुरु’ की बहुत महिमा गाई गई है। गुरु का पद ईश्वर से भी बड़ा माना गया है। इसलिए वेदान्त धर्म को मानने वाले, आजकल संसार के लोग जिन्हें हिन्दू कह कर संबोधित करते हैं,वो गुरु शिष्य-परम्परा को बहुत महत्त्व देते हैं।।
जिसे अनेक जन्मों के कर्म फल के प्रभाव से ईश्वर कृपा और गुरु के आशीर्वाद से गुरु पद प्राप्त होता है वही सच्चा आध्यात्मिक गुरु होता है। जिस प्रकार कर्मफल के अनुसार विशेष योग्यता पाने के बाद भौतिक पद की प्राप्ति होती है, ठीक उसी प्रकार आध्यात्मिक गुरु का पद प्राप्त होता है। भौतिक पद का समय निर्धारित है परन्तु आध्यात्मिक जगत् का गुरुपद जीवन भर के लिए प्राप्त होता है।
कथा के पूर्व महाराज श्री का श्री काशी धर्मपीठ परम्परा अनुसार  पादुका पूजन  मुंबई से आये  जे.एन. उपाध्याय जी डोंगर सिंह ,अनिल सिंह,राजेन्द्र दूबे, भिंड से शास्त्री, व्रज विहारी त्रिपाठी ,ज्ञानेंद्र दीक्षित ,माधव साहू शिवकुमार रजक, कुन्नू लाल, कैलाश राय एवं समिति के पदाधिकारियों द्वारा पूजन  सम्पन्न हुआ।